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यह है बीकानेर की खास पाठशाला, जहां सिखाए जाते है गीता के श्लोक

India-1stNews





श्रीमद् भगवत गीता प्रेरणादायी है। इसके श्लोक हर व्यक्ति को जीवन का ज्ञान, विश्व कल्याण और समभाव का संदेश देते हैं। आधुनिक युग और प्रतिस्पर्धा के माहौल में बच्चे बालपन से ही संस्कारी, तेजयुक्त और अपने कर्म के प्रति जिम्मेदार रहते हुए श्रेष्ठ नागरिक बनें, इसके लिए भीनासर स्थित श्री मुरली मनोहर धोरा पर साप्ताहिक गीता पाठशाला का संचालन हो रहा है। बच्चों को गीता के श्लोक कंठस्थ करवाए जा रहे हैं। बच्चों को पाठशाला तक लाने के लिए बसों की भी सुविधा है। हर रविवार सैकड़ों बालक-बालिकाएं गीता के श्लोक का अध्ययन, वाचन और पठन के लिए पहुंचते हैं।

संस्कार व मार्गदर्शन

गीता पाठशाला में गीता के अध्ययन के साथ-साथ बच्चों के संस्कार, दैनिक कार्यकलापों पर भी नजर रखी जाती है। बच्चों का नियमित उठना, बैठना, भोजन, बोलना, पढ़ाई, स्मरण शक्ति, परिवारजनों के प्रति व्यवहार आदि पर माता-पिता से रिपोर्ट ली जाती है। वहीं गीता पाठशाला में लड़के-लड़कियों का मार्गदर्शन कर व्यावहारिक ज्ञान व संस्कारों का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। जो बच्चे सम्पूर्ण गीता कंठस्थ कर चुके हैं वे अब दूसरे बच्चों को गीता का अध्ययन करवा रहे हैं।

पाठशाला में एक हजार से अधिक बच्चे
श्री मुरली मनोहर धोरा के श्याम सुंदर दास महाराज के अनुसार, स्वामी रामसुख दास जी महाराज के समय यहां गीता पाठ की व्यवस्था थी। बच्चों को गीता अध्ययन से जोड़ने, संस्कार प्रदान करने और मार्गदर्शन प्रदान कर संस्कारी व चरित्रवान नागरिक बनाने के उद्देश्य से गीता पाठशाला की शुरुआत की गई। महज कुछ बच्चों के साथ प्रारंभ हुई। इस पाठशाला में वर्तमान में करीब एक हजार से अधिक बच्चे गीता अध्ययन कर रहे हैं। पाठशाला के श्रेष्ठ परिणाम सामने आ रहे हैं।

टॉपिक एक्सर्पट

राष्ट्र निर्माण और संस्कारों के निर्माण में श्रीमद् भगवत गीता श्रेष्ठ है। आने वाली पीढ़ी को गीता का प्रसाद मिले, संस्कारी हों, इसके लिए गीता का अध्ययन-अध्यापन जरूरी है। गीता में विलक्षण ज्ञान है। भगवान ने प्रजा के लिए इसमें उपदेश दिया है। गीता के नियमित अध्ययन से व्यक्ति के जीवन में विलक्षण बदलाव आते हैं। गीता का अध्ययन-अध्यापन करना धर्म है। - संत किशन दास महाराज,श्री मुरली मनोहर धोरा

बच्चों की जुबानी

पहले चिडचिड़ापन रहता था। किसी काम में मन नहीं लगता था। एकाग्रता की कमी थी। श्रीमद् भगवत गीता कंठस्थ होने व वाचन से यह कमी दूर हुई है। - रितेश गहलोत, छात्र

पहले किसी काम को शुरू करने से पहले घबराती थी। आत्मविश्वास की कमी थी। मन में आशंका व चिंताएं रहती थीं। गीता कंठस्थ होने के बाद मेरा आत्मविश्वस बढ़ा है। - जाह्नवी प्रजापत, छात्रा

गीता पढ़ने से मेरे व्यवहार में बदलाव आया है। दैनिक दिनचर्या व्यविस्थत हुई है। मन प्रसन्न रहता है व पढ़ाई में पहले अधिक मन लग रहा है। - ऋषि सोनी, छात्र

गीता अध्ययन से आत्मविश्वास बढ़ा है। पहले पढ़ाई में मन नहीं लगता था। अब मन लग रहा है। पढ़ाई करना अब आसान लग रहा है। -खुशी भाटी, छात्रा

माता-पिता का कहना

गीता अध्ययन से बेटी खुशी के जीवन में बदलाव आया है। याददाश्त बढ़ी है। दैनिक दिनचर्या में व्यवस्थित हुई है। अपने दैनिक कार्य भी खुशी स्वयं के स्तर पर करने लगी है। - शिव शंकर भाटी

गीता पाठशाला से रितेश के व्यवहार में बदलाव आया है। पहले चिडचिड़ापन अधिक था, अब शांत है। संस्कार निर्माण में भी पाठशाला मददगार बनी है। उसकी पढ़ाई में एकाग्रता बढ़ी है। - पूनम चंद गहलोत

गीता पाठशाला-एक सिथति

2019 में हुई थी गीता पाठशाला की शुरुआत।
25 बच्चे थे पाठशाला की शुरुआत में।
1000 हजार से अधिक बच्चे वर्तमान में कर रहे गीता अध्ययन।
40 वाहन हैं बच्चों को लाने-ले जाने के लिए।
03 घंटे हर रविवार लगती है यह पाठशाला।
25 बच्चों को गीता के 18 अध्याय के श्लोक कंठस्थ।

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