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मां ने कहा पुत्र ने किया है घर पर कब्जा, सदर पुलिस ने बिना साक्ष्य ही पेश कर दिया चालान, न्यायालय ने ठुकराया

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मां ने कहा पुत्र ने किया है घर पर कब्जा, सदर पुलिस ने बिना साक्ष्य ही पेश कर दिया चालान, न्यायालय ने ठुकराया 

एडवोकेट अनिल सोनी ने कहा, चालान तो दूर, मुकदमा ही था गलत

बीकानेर। खाकी भरोसे का प्रतीक है। हर खाकीधारी को चाहिए कि वह किसी निर्दोष को सजा ना होने दे। कानून का भी यही ध्येय है। चाहे सौ अपराधी बच जाए, मगर एक निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए। मगर सदर थाने के एक एएसआई पर इन नैतिक मूल्यों के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लग रहा है। मामला आपराधिक अतिचार के एक मुकदमें से जुड़ा बताया जा रहा है। 
दरअसल, सदर थाने ने मुरलीधर सोनी के खिलाफ धारा 447 आईपीसी के तहत एक मुकदमा दर्ज किया था। जांच एएसआई अरुण मिश्रा को दी गई। पुलिस को मुरलीधर की माता के नाम से एक परिवाद मिला था। परिवाद में लिखा गया कि परिवादिया के पति भंवरलाल सोनी ने 45 साल पहले मकान का निर्माण करवाया था, तब उसका पुत्र मुरलीधर पांच वर्ष का था। कहा कि मुरलीधर ने पूर्व में परिवादिया के साथ मारपीट कर उसे घर से बाहर निकाल दिया। समाज में भी समझौते के लिए पंचायती हुई मगर मुरलीधर नहीं माना। मामले में जांच अधिकारी एएसआई अरुण मिश्रा ने मुरलीधर के खिलाफ चालान पेश कर दिया।

अधीनस्थ न्यायालय ने ये कहते हुआ किया मुरलीधर को बरी अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट संख्या 2 के पीठाशीन अधिकारी हेमंत जानू  ने आरोपी मुरलीधर को बरी कर दिया। न्यायालय ने कहा कि प्रथमदृष्टया आरोपी मुरलीधर पर आपराधिक अतिचार से जुड़ी धारा 447 आईपीसी के आधार ही पत्रावली में मौजूद नहीं है। प्रकरण घर पर कब्जा कर लेने से जुड़ा है। न्यायालय ने कहा कि अभियोजन की ओर से ऐसा कोई अभिलेख जांच के दौरान एकत्रित नहीं किया गया जो यह दर्शाता हो कि अभियुक्त मुरली ने अपनी माता लाली देवी व दो भाईयों को मारपीट कर घर से बेदखल कर घर पर कब्जा कर लिया हो। जबकि परिवादिया लाली देवी ने एफआईआर हेतु एसपी को दिए गए प्रार्थना पत्र में लिखा कि उसके पति भंवरलाल द्वारा 45 साल पूर्व मकान का निर्माण करवाया गया। उस समय उसका पुत्र मुरलीधर पांच साल का था। मैंने पूर्व में सदर थाने में प्रार्थना पत्र दिया गया। जिसकी एएसआई अरुण मिश्रा द्वारा निष्पक्ष जांच की जा रही है। मुझे मेरा मकान दिलाने की कृपा करें। परिवादिया ने कहा कि पूर्व में मुरलीधर ने लड़ाई झगड़ा करके उसे घर से बाहर निकाल दिया। समाज के सामने भी समझौते का प्रयास किया गया, लेकिन वह नहीं माना। इसी मामले में एएसआई ने चालान पेश किया। लेकिन न्यायालय ने अभियुक्त को बरी करते हुए कहा कि इस प्रकरण में किस दिनांक को घर में प्रवेश कर अभियुक्त द्वारा मकान पर कब्जा किया गया, यह स्पष्ट नहीं है। परिवाद पर हस्ताक्षर भी परिवादिया की जगह मनोज सोनी के हैं। मौखिक और लेखबद्ध साक्ष्य से न्यायालय के समक्ष आपराधिक अतिचार के घटक पूर्णतया दर्शित नहीं होते जबकि परिवादिया के पति की मृत्यु 34 साल पूर्व हो चुकी है और 447 आईपीसी में अपराध का संज्ञान घटना से एक वर्ष के भीतर ही लिया जा सकता है। इस कारण सदर पुलिस द्वारा पेश किया गया आरोप पत्र स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है। कोर्ट ने बहस प्रसंज्ञान के स्तर पर ही मुरलीधर को बरी कर दिया। आरोपी की ओर से पैरवी एडवोकेट अनिल सोनी ने की।

-परिवादी का आरोप है कि जांच अधिकारी ने निष्पक्ष जांच नहीं की, इसी वजह से उसे न्यायालय के चक्कर काटने पड़े, जमानत करवानी पड़ी। आरोप है कि परिवाद के अनुसार मुकदमा ही नहीं बन रहा था। पुलिस ने पहले तो मुकदमा किया, उस पर भी बिना साक्ष्य ही जुर्म प्रमाणित मानकर चालान पेश कर दिया।

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