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एमजीएसयू : संग्रहालय और प्रलेखन केंद्र द्वारा राजस्थानी ख्यातें विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित

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एमजीएसयू : संग्रहालय और प्रलेखन केंद्र द्वारा राजस्थानी ख्यातें विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित     

इतिहास जानने हेतु विश्व का सबसे प्रामाणिक माध्यम हैं राजस्थानी ख्यातें : प्रो॰ शेखावत

पीढ़ीयावलियां वंशावलियां हैं ख्यातों का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा : प्रो॰ भादाणी



एमजीएस यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर म्यूज़ीयम एन्ड डॉक्युमेंटेशन द्वारा राजस्थानी ख्यातें : इतिहास जानने के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला आयोजित की गई जिसमें विद्यार्थियों ने दो तकनीकी सत्रों में राजस्थानी ख्यातों के ऐतिहासिक महत्व के बारे में विषय विशेषज्ञों से जानकारी प्राप्त की। आयोजन सचिव सेंटर की डायरेक्टर डॉ॰ मेघना शर्मा ने अतिथियों के मंच से स्वागत पश्चात सेंटर की अब तक की गतिविधियों पर प्रकाश डाला। विषय प्रवर्तन करते हुये डॉ॰ शर्मा ने कहा कि राजस्थान के इतिहास को यदि सूक्ष्मता से जानना है तो हम ख्यातों के महत्व को कमतर नहीं आंक सकते, ये इतिहास जानने की सर्वथा मौलिक स्रोत मानी जाती हैं। 
इससे पूर्व सर्वप्रथम माँ सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यशाला का उद्घाटन समारोह आरंभ हुआ जिसमें अध्यक्षता करते हुये कुलपति आचार्य मनोज दीक्षित ने कहा कि अब तक लिखा गया इतिहास विजेताओं द्वारा लिखा गया इसीलिये राजस्थानी ख्यातों के आलोक में इतिहास का पुनर्लेखन आवश्यक है। मूलतः भारतीय परंपरा ही शोध परंपरा है।

उद्घाटन समारोह में तकनीकी सत्रों के वक्ताओं जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी जोधपुर के पूर्व डीन व राजस्थानी विभागाध्यक्ष प्रो॰ कल्याण सिंह शेखावत व अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो॰ भंवर भादाणी का मंच से सम्मान किया गया। 

प्रथम सत्र में प्रो॰ कल्याण सिंह शेखावत ने विद्यार्थियों को बताया कि ख्यातें विश्व की सबसे प्रामाणिक स्रोत हैं जिसपर अपेक्षित कार्य नहीं हुआ है। वीर रचनाकार युद्ध भी लड़ते थे और कलम भी चलाते थे। ख्यातों ने सदा सत्य की रक्षा की है और इन्हीं ने प्रताप को महान बताया। 

द्वितीय तकनीकी सत्र में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुये प्रो॰ भंवर भादाणी ने कहा कि पीढ़ीयावलियां वंशावलियां ख्यातों का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। पांडुलिपियाँ पढ़ने से मौलिक शोध की ओर विद्यार्थी अग्रसर हो सकते हैं।
तकनीकी सत्रों के बाद विषय पर एक खुली चर्चा भी रखी गई जिसमें विषय विशेषज्ञों ने विद्यार्थियों की जिज्ञासाओं को शांत किया।  आभार प्रदर्शन कुलसचिव अरुण प्रकाश शर्मा द्वारा किया गया तो वहीं कार्यशाला का संचालन डॉ॰ मुकेश हर्ष द्वारा किया गया। 

आयोजन में अतिरिक्त कुलसचिव डॉ॰ बिट्ठल बिस्सा के अतिरिक्त विश्वविद्यालय के शिक्षक, अधिकारीगण व विद्यार्थी शामिल रहे।  आयोजन  में डॉ॰ नमामीशंकर आचार्य, रामोवतार उपाध्याय, जसप्रीत सिंह, डॉ॰ रितेश व्यास, डॉ॰ पवन रांकावत, डॉ॰ गोपाल व्यास, रिंकू जोशी व तुल्छाराम का विशेष सहयोग रहा। 
           

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