मात्र अधिवक्ता होने से पत्नी को भरण पोषण के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता, घरेलू हिंसा के मामले में पति की अपील याचिका खारिज
बीकानेर: न्यायालय अपर सेशन न्यायाधीश महिला उत्पीड़न बीकानेर ने घरेलू हिंसा के मामले में आपराधिक अपील की सुनवाई करते हुए पति के द्वारा पेश की गई अपील को खारिज करते हुए अधीनस्थ न्यायालय का निर्णय बरकरार रखा। मामले के अनुसार घरेलू हिंसा के एक प्रकरण में परिवादिया चारुलता चौधरी ने अपने पति तरुण चौधरी के खिलाफ वर्ष 2014 में परिवाद दायर किया। जिस पर 15 फरवरी 2023 को पत्नी का परिवाद स्वीकार कर ₹5000 का भरण पोषण देने का आदेश पारित किया। जिससे व्यथित होकर पति द्वारा जिला न्यायालय में अपील पेश की गई। जिस पर सुनवाई करते हुए पति की अपील याचिका खारिज कर न्यायालय ने कहा कि केवल मात्र पत्नी के अधिवक्ता होने के आधार मात्र से ही पत्नी को भरण पोषण के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। पति ने यह कहते हुए अपील स्वीकार करने की बात कही की पत्नी स्वयं पैसे से अधिवक्ता है और वह ₹25000 महीना कमाती है। जिस पर न्यायालय ने कहा कि आज की स्थिति में वकालत का व्यवसाय प्रतिस्पर्धात्मक व्यवसाय है। पति द्वारा पत्नी के ₹25000 कमाने के संदर्भ में कोई वास्तविक व नियमित आय के दस्तावेज नहीं पेश किए गए हैं। केवल मात्र अधिवक्ता होने के कारण यह नहीं माना जा सकता की पत्नी ₹25000 महीना कमाती हो। प्रकरण में पत्नी की तरफ से पैरवी लालचंद सुथार ने की।
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