विद्या संबल योजना और राजसेस के नाम पे हो रही अराजकता के विरुध उच्च न्यायालय ने लिया प्रसंघयान, सरकार से जवाब तलब
विद्या संबल योजना और राजसेस के नाम पर पिछले तीन वर्षोँ से राज्य में उच्च एवं कॉलेज शिक्षा विभाग ने उच्च शिक्षा प्रणाली को ध्वस्त कर रखा है। राज्य के छात्रों और बेरोजगार शिक्षकों का जिसके तहत बहुत शोषण हो रहा है, समान कार्य एवं सेवाएं देने के बाद भी योजना के नाम पे बेरोजगारों का भर्सक रूप से पड़िताड़ित किया गया है। विद्या संबल योजना के नाम पे कॉलेज शिक्षा विभाग ने पूरे राज्य में विभिन्न कॉलेजयें खोल दिये है परंतु वहाँ पर्याप्त शिक्षक नही नियुक्त किये यही नही कई कॉलेजों में तो विद्या संबल योजना के तहत मात्र एक शिक्षक तीन- तीन महिनो के लिए लगा कर चला रखे है, जिसके विरुध मानानीय उच्च न्यायालय द्वारा विभिन्न आदेशों के बावजूद विभाग अपनी मनमानी करता रहा। शोषण की इस्सी कड़ी में राजसेस् नामक संस्थान बनाई गई और अब उसके तहत प्राकृतिक सिद्धांतों के विरुध नियमावली जारी की गयी, जिन्हे चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता प्रशांत बिस्सा एवं अन्य ने राजस्थान उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष याचिका दायर की।
याचिकाकर्ता प्रशांत बिस्सा की ओर से विद्वान अधिवक्ता वर्षा बिस्सा ने कोर्ट को बताया की राजसेस् के नाम पर बनी हुई नियमावली न केवल कानूनी रूप से अनुचित हैं अपितु राजस्थान कॉलेज शिक्षा नियम, 1986 के भी विरुध है। अधिवक्ता वर्षा बिस्सा ने कोर्ट को यह भी बताया के विद्या संबल योजना के तहत लगे सभी शिक्षक नियमित रूप से लगे सहायक आचार्यों के समकक्ष कार्य करने के बावजूद कालाशों पर तीन तीन माह के लिए लगाए जाते है, और उन्हे नन्युन्तम वेतनमान भी नही दिया जाता है जो की समान कार्य समान वेतन के सिद्धांत के भी विरुध है। इसके बावजूद राजसेस् नियमावली में इन शिक्षकों को एक मुश्त मासिक वेतन पर रखने के न्याय विपरीत नियम पारित किये गए है। जिसके तहत आज राजस्थान उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश मदन मोहन श्रीवास्तव एवं मदन गोपाल व्यास की खंडपीठ ने सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किये।
0 Comments