■ बाल मुकुंद जोशी
भाजपा अध्यक्ष पद के लिए राष्ट्रीय सेवक संघ की पसंद बनी वसुंधरा राजे के सामने मोदी शाह जोड़ी की अदावत उनकी मंजिल में रोड़ा बन सकती है? लेकिन संघ ने अब की बार अपने मन माफिक अध्यक्ष बनाने के लिए घोड़े खोल दिए है.
आरएसएस कतई नहीं चाहता कि उसकी अहमियत कमतर हो.
भाजपा में जेपी नड्डा का अगला उत्तराधिकारी कौन होगा? इसको लेकर उठा पटक तेज हो गई है. जाहिर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ऐसा अध्यक्ष चाहेंगे जो उनके इशारों पर चले. दूसरी ओर संघ भी इस बार कतई नहीं चाहता कि कोई ऐसा अध्यक्ष बने जो संगठन की वजह किसी खास व्यक्ति के प्रति ज्यादा जवाब दे हो. संघ नड्डा के कार्यकाल को भी ज्यादा बेहतर नहीं मानता क्योंकि नड्डा ने एक वक्त यह कहकर संघ की प्रतिष्ठा को आधात पहुंचाया था, भाजपा अब विश्व का सबसे बड़ा राजनैतिक संगठन हो गया,उसे अब आरएसएस की निर्भरता की जरूरत नहीं है.
भाजपा के नए अध्यक्ष के लिए संघ ने संजय जोशी के नाम को आगे रखा था जो मोदी शाह को फूटी आंख नहीं सुहाते.ऐसे में जोशी के नाम का काउंटर करने के लिए मोदी शाह की ओर से शिवराज चौहान का नाम का सुझाव गया,संघ को यह नाम रास नहीं. बाद में संघ ने वसुंधरा राजे के नाम को प्रस्तावित कर गुगली फैकी. सियासी गलियारों में अब तरह-तरह की संभावनाएं खोजी जाने लगी है.
भाजपा में मोदी शाह पर नकेल डालने के लिए उनके विरोधियों को भी राजे का नाम 'सूट' कर रहा है. देश भर में अनेक जगह से उनको समर्थन भी मिलने लगा है. सियासत में रुचि रखने वाले जानते है कि मैडम जब राजस्थान में मुख्यमंत्री थी तो उन्होंने केंद्र की ज्यादा परवाह नहीं की.अपने बेटे सांसद दुष्यंत को केंद्रीय मंत्री परिषद में शामिल करवा ने के लिए वे मोदी शाह से भी उलझ गई.उस वक्त मुख्यमंत्री ने राजस्थान के सभी 25 सांसदों को दिल्ली के बीकानेर हाउस में एक साथ रखकर केंद्र पर दबाव बनाया था. यह दीगर है कि उनमें से गंगानगर सांसद निहालचंद मेघवाल मौका पाकर ग्रुप से अलग हो गए.ऐसा कर निहालचंद केंद्रीय मंत्री परिषद में तो जरूर जगह पा गये लेकिन महारानी के कोपभाजन भी हो गये. नाराज वसुंधरा ने मंत्री बनने के बावजूद निहाल की सियासत को भूटी कर रख दी.अपनी पर आई राजे ने एक समय गृहमंत्री शाह के तीन दिन तक फोन रिसीव तक नहीं किये. इन सारी घटनाओं के बाद राजमाता विजय राजे सिंधिया की सुपुत्री भाजपा के शासकों के सामने ताल ठोककर खड़ी हो गई. प्रदेश में तब तक भाजपा का एकमात्र पावर सेन्टर सीएम आवास था.दिल्ली को भी ऐसे में चुनाव का इंतजार करना पड़ा. हालांकि राजे का "साइज कट" करने के लिए दिल्ली के प्रयास बराबर रहे.इसके लिए जयपुर की महारानी दिया कुमारी को प्रमोट किया जाने लगा.उन्हें पहले सवाई माधोपुर से विधायक और फिर राजसमंद से सांसद बनाया गया. इसके बावजूद मेडम का जलवा बरकरार रहा.इस बार दिया कुमारी को प्रदेश में भाजपा की सबसे सुरक्षित सीट जयपुर की विद्याधर नगर से टिकट दी गई और उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाया गया.आरएसएस के प्रमुख ब्रांड,वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवारी भाजपा छोड़ कांग्रेस में चले गये.तब वसुंधरा को घेरने के लिए तिवारी को फिर से भाजपा में लाया गया क्योंकि वे भी महिला नैत्री के घोर विरोधी थे.तिवारी राज्यसभा का सदस्य बनाया गया ताकि शक्ति संतुलन कायम हो सके.इतना ही नहीं राजे की तोड़ के लिए दिल्ली ने राजेंद्र राठौड़ को नेता प्रतिपक्ष बनाया. इन सब के उपरांत जनता और सूबे के भाजपा संगठन में महारानी क्रेज बदस्तूर कायम रहा.
लोकसभा चुनाव से पूर्व राजस्थान विधानसभा के चुनाव हुए.उस समय दिल्ली की ताकत काफी मजबूत थी.
उसी का भरपूर फायदा उठाकर मोदी शाह की जोड़ी ने विधानसभा चुनाव में सब कुछ दरकिनार कर 'पर्ची' के बल मुख्यमंत्री के सिंहासन पर भजनलाल शर्मा को बैठा दिया जो राजनैतिक गलियारों में घोर आश्चर्य का सबब रहा. ऐसाकर दिल्ली ने महारानी से अपना हिसाब किताब तो पूरा कर लिया परन्तु सत्ता और संगठन दोनों के चेहरे विकृत कर दिए जिसके नतीजे आज प्रदेश की जनता के अलावा भाजपा भोग रहे हैं.
इसी बीच लोकसभा के हुए चुनाव के बाद दिल्ली की ताकत दरक गई. अब फैसला मनमर्जी के न होकर सामूहिक तौर पर लिए जाने लगे है. जिसके चलते अब की बार अध्यक्ष मोदी शाह की मर्जी का बनना आसान नहीं होगा. बहरहाल साफ है संघ की चली तो वसुंधरा राजे को अध्यक्ष का ताज पहने का मौका मिल सकता है.
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