बीकानेर@ ढाई वर्षीय की मौत के मामले में सदर पुलिस थाने में मामला दर्ज होने के बाद नई-नई परतें खुलकर सामने आ रही है। मेडिकल कॉलेज के बॉर्ड द्वारा आरोपित चिकित्सकों को दी गई क्लीन चिट व सीएमएचओ कमेटी की जांच अलग-अलग रूप में सामने आने के बाद उच्च स्तरीय जांच के हालात पैदा कर दिए है। क्योंकि मेडिकल कॉलेज बोर्ड ने बच्ची के इलाज में डॉक्टर्स की लापरवाही से इनकार करते हुए चिकित्सकों को क्लीन चिट दे दी। उसके बाद सीएमएचओ की कमेटी द्वारा की गई जांच में माना कि ईलाज में डॉक्टर गौरव गोंबर द्वारा लापरवाही तो हुई है। इस रिपोर्ट में माना गया कि ऑपरेशन के बाद बच्ची को ईलाज के लिए डॉ. गौरव गोंबर द्वारा हॉस्पिटल में भर्ती करना सही नहीं था। जबकि डॉ. गौरव गोंबर को यह पता था कि यह ऑपरेशन उन्होंने किया ही नहीं, तुरंत ही जयपुर रैफर कर देना चाहिए था। ऐसे में सवाल है कि मेडिकल बोर्ड व कमेटी की जांच उलझन में क्या गुनहगारों को सजा मिल पाएगी?
इस संबंध में शुक्रवार को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए), मेडिकल प्रैक्टिशनर्स सोसाइटी (एमपीएस) और उपचार संगठन के पदाधिकारियों ने शुक्रवार को जिला पुलिस अधीक्षक कावेंद्र सागर से मुलाकात की।
इस दौरान उन्होंने वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. गौरव गोंबर के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी पर आपत्ति जताई और इसे अनुचित बताया। प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि 4 मार्च 2025 को पीबीएम अस्पताल के अधीक्षक द्वारा गठित पांच सदस्यीय विशेषज्ञ मेडिकल बोर्ड ने डॉ. गोंबर को किसी भी प्रकार की लापरवाही से मुक्त पाया था। इस बोर्ड में न्यूरोलॉजिस्ट, नेफ्रोलॉजिस्ट, पीडियाट्रिशियन, पीडियाट्रिक सर्जन और मेडिकल ज्यूरिस्ट शामिल थे। इसके बावजूद, 21 मार्च को मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी (सीएमएचओ) डॉ. पुखराज साध ने दो सदस्यीय बोर्ड का गठन किया, जिसमें खंड मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. रमेश कुमार गुप्ता और सिटी डिस्पेंसरी नंबर एक के पीडियाट्रिशियन डॉ. मुकेश जनागल शामिल थे। इस बोर्ड ने उच्च स्तरीय जांच की सिफारिश की। हालांकि, 17 अप्रैल को इसी बोर्ड ने डॉ. गोंबर को लापरवाह ठहराया
दरअसल, बच्ची के पिता जगदीश खत्री बच्ची की मौत के बाद एफआईआर दर्ज करवाने के लिए पुलिस थाने गए थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के अनुसार पुलिस ने बताया कि डॉक्टर पर सीधा मामला पुलिस दर्ज नहीं कर सकती है, इसके लिए मेडिकल बॉर्ड कमेटी से जांच करवानी होती है, जांच में अगर कोई गड़बड़ी सामने आती है तो पुलिस एफआईआर दर्ज कर उसकी जांच करती है। ऐसे में पुलिस ने पीबीएम अधीक्षक को पत्र लिखकर राय मांगी। जिस पर पीबीएम प्रशासन ने चिकित्सकों की एक कमेटी बनाकर प्रकरण की जांच करवायी, जिसमें संबंधित चिकित्सकों को क्लिन चिट दे दी गई। यानि बताया गया कि बच्ची के ईलाज में किसी प्रकार की कोई लापरवाही नहीं बरती गई। उसके बाद सीएमएचओ को पत्र लिखा गया, जिस पर सीएमएचओ ने दो डॉक्टर्स की कमेटी बनाकर केस की फिर से जांच कराई। कमेटी ने पहले राय दी कि प्रकरण की जांच उच्च स्तरीय कमेट से करवायी जाए। उसके बाद 17 अप्रैल को इसी बोर्ड ने ढाई वर्षीय बच्ची की मौत ऑपरेशन के बाद कॉम्पलिकेशन के कारण होना बताया। साथ ही बताया कि किसी ऑपरेशन के बाद बुखार का आना तथा सारे शरीर पर सूजन आना मरीज के लिये अच्छा संकेत नहीं होता। डॉ. गौरव गोंबर द्वारा ऑपरेशन के इस जटिल मरीज को पांच दिन रखना कमेटी की राय में सही नहीं था। ऑपरेशन के बाद अगर मरीज को कोई कॉम्पलीकेशन होता है तो संबंधित मरीज का ईलाज ऑपरेशन करने वाले सर्जन की देखरेख में किया जाना उचित होता है। साथ ही बताया गया कि कमेटी की राय में ऑपरेशन के बाद डॉ. गौरव गोंबर द्वारा पांच दिवस तक मरीज को ईलाज के लिय रोकना सही नहीं पाया गया। बता दें कि सीएमएचओ की इस रिपोर्ट के बाद ही पुलिस थाने में मुकदमा दर्ज हुआ, जिसकी अब जांच चल रही है।
बच्ची के पिता का यह आरोप
बच्ची के पिता जगदीश चंद्र का कहना है कि मेडिकल कॉलेज बॉर्ड द्वारा जब जांच की गई थी तब उन्हें नहीं बुलाया गया था और ना ही किसी प्रकार की जांच-रिपोर्ट तथा बच्ची के दस्तावेज मांगे गए। ऐसे में उस बॉर्ड ने किस आधार पर जांच की, यह समझ से बाहर है। जबकि सीएमएचओ की कमेटी ने माना कि बच्ची के इलाज में लापरवाही बरती गई। ऑपरेशन के बाद बच्ची को इलाज के लिए डॉ गौरव गोंबर के हॉस्पिटल में रखना सही नहीं माना।
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